भारतीय रेल को देश की जीवन रेखा कहा जाता है। हर दिन लाखों लोग एक शहर से दूसरे शहर का सफर करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ऐसी ट्रेन के बारे में सुना है जिसमें पूरे 33 घंटे के सफर में यात्रियों को मुफ्त में भोजन मिलता है? यह कोई सपना नहीं, बल्कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं की एक अनोखी पहल का परिणाम है। इस ट्रेन को लोग प्यार से “चलता-फिरता लंगर” कहने लगे हैं।
यह पहल यात्रियों की सुविधा और सेवा भाव का बेहतरीन उदाहरण है। दूर-दराज़ के इलाकों से आने वाले लोगों के पास अक्सर खाने की व्यवस्था नहीं होती। ऐसे में यह ट्रेन न केवल उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचाती है, बल्कि रास्ते भर उनका पेट भी भरती है। इसका उद्देश्य केवल यात्रा नहीं, बल्कि “सेवा” को यात्रा का हिस्सा बनाना है।
इस सेवा को लागू करने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी गरीब, वृद्ध या लंबी दूरी तय करने वाले यात्री को भूखा न रहना पड़े। भारतीय संस्कृति में भोजनदान को सबसे बड़ा दान माना गया है, और इसी परंपरा को रेल मंत्रालय और धार्मिक ट्रस्टों ने मिलकर नई दिशा दी है।
Langar Express
“चलता-फिरता लंगर” जैसी पहल पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से चलने वाली लंबी दूरी की कुछ विशेष ट्रेनों में शुरू की गई है। यह मुख्य रूप से उन यात्रियों के लिए है जो नॉर्थ इंडिया से दक्षिण भारत या पूर्वी भारत की ओर जाते हैं, जिनका सफर 30 घंटे से अधिक का होता है। रेल मंत्रालय ने यह सेवा सिख धार्मिक संगठनों और सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से आरंभ की है।
इस सेवा के तहत ट्रेन में यात्रियों को सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना मुफ्त में दिया जाता है। खाना पूरी तरह शुद्ध, सादा और पौष्टिक होता है। सब्ज़ी, रोटी, चावल, दाल, अचार और कभी-कभी मिठाई भी दी जाती है। विशेष ध्यान इस बात पर दिया गया है कि भोजन स्वादिष्ट हो, लेकिन बहुत मसालेदार या भारी न हो।
भोजन की तैयारी और वितरण की प्रक्रिया
ट्रेन के हर प्रमुख स्टेशन पर खाने की व्यवस्था करने के लिए स्थानीय लंगर समितियाँ जुड़ी हुई हैं। रेलवे द्वारा इन संस्थाओं को पहले से सूचित किया जाता है कि कितने यात्रियों को भोजन की आवश्यकता होगी। उसके अनुसार लंगर का खाना तैयार होता है और प्लेटों में पैक कर ट्रेन में चढ़ाया जाता है।
इस प्रक्रिया में सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। खाना ‘स्टील के दोबारा उपयोग योग्य डिब्बों’ में रखा जाता है ताकि प्लास्टिक का उपयोग कम किया जाए। यात्रियों को यह भोजन मुफ्त में वितरित किया जाता है, लेकिन कोई भी यात्री दान देना चाहे तो स्वेच्छा से कर सकता है।
कई स्वयंसेवी इस वितरण में सक्रिय रहते हैं। वे मुस्कान के साथ यात्रियों को भोजन देते हैं, और उनका यह भाव ही इस सेवा को विशेष बनाता है। लंबे सफर में जब थके यात्री गर्म खाने की थाली पाते हैं, तो उनके चेहरे पर जो सुकून दिखता है, वही इस योजना की असली सफलता है।
सरकार और संगठनों का योगदान
रेल मंत्रालय ने इस योजना को “सेवा भोजन योजना” का विस्तार कहा है। फर्क इतना है कि इसमें धार्मिक और सामाजिक संगठनों का सहयोग बढ़ाया गया है। वे अपनी स्वयं की रसोई और टीम के माध्यम से ट्रेन में खाना उपलब्ध कराते हैं। सरकार उन्हें स्टेशन पर अनुमति, जल और वितरण संबंधी सुविधा देती है।
कुछ ट्रेनों में यह सेवा पूरी तरह रेलवे की ओर से चलाई जाती है, जबकि कुछ में गुरुद्वारा समितियाँ और एनजीओ मिलकर आयोजन करते हैं। यह साझेदारी सरकार और समाज के बीच विश्वास का सुंदर उदाहरण है।
इसके साथ ही रेलवे स्टेशन पर बड़े पोस्टर और घोषणाओं के माध्यम से यात्रियों को सूचित किया जाता है कि उन्हें खाना खरीदने की आवश्यकता नहीं है। इस योजना से गरीब यात्रियों को राहत तो मिलती ही है, लेकिन साथ ही रेलयात्रा मानवीय मूल्यों से भी जुड़ जाती है।
यात्रियों की प्रतिक्रिया और प्रभाव
इस पहल को यात्रियों से बहुत प्यार और आशीर्वाद मिला है। कई यात्रियों ने बताया कि पहले वे लंबी यात्राओं में महंगे खाने से परेशान हो जाते थे या भूखे रह जाते थे। अब भोजन के इंतज़ाम से उन्हें न केवल राहत मिलती है, बल्कि देश के भीतर “एकता और सेवा” का भाव महसूस होता है।
युवा स्वयंसेवी और धार्मिक संगठन भी बड़ी संख्या में इस सेवा से जुड़े हैं। उनके लिए यह कोई सामान्य काम नहीं, बल्कि एक “सेवा का अवसर” है। इस पहल ने भारतीय रेलवे की छवि को और मानवीय बना दिया है।
निष्कर्ष
“चलता-फिरता लंगर” केवल एक ट्रेन नहीं, बल्कि सेवा और संवेदना का चलता उदाहरण है। यह योजना दिखाती है कि जब सरकार और समाज साथ मिलकर काम करते हैं, तो यात्रियों को केवल सफर नहीं, बल्कि सुकून भरा अनुभव मिलता है। भारत में रेल यात्रा अब सिर्फ एक सफर नहीं, बल्कि सेवा का भी प्रतीक बन चुकी है।