सरसों तेल के भाव में गजब की गिरावट की खबरें सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर तेजी से फैल रही हैं। लेकिन तथ्य क्या हैं? वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है। 2025 में सरसों और सरसों तेल के भाव में तेजी दर्ज की जा रही है, न कि गिरावट। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, आवक कम होने, त्योहारों की मांग बढ़ने और सरकारी नीतियों के चलते भाव लगातार ऊपर जा रहे हैं। उपभोक्ताओं को आने वाले दिनों में सरसों तेल पर अधिक खर्च करना पड़ सकता है।
इस बीच, सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए कई कदम उठाए हैं। जीएसटी दर में कमी और आयात शुल्क घटाने जैसे फैसले खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन ये उपाय तुरंत असर नहीं दिखा रहे हैं। किसानों के लिए यह समय फायदेमंद है, जबकि आम उपभोक्ता बजट पर नजर रखने को मजबूर हैं।
सरसों तेल भाव 2025: वर्तमान स्थिति
सरसों तेल के भाव में गिरावट की बात गलत है। वास्तविकता में, भाव बढ़ रहे हैं। अगस्त 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, सरसों तेल का औसत मंडी भाव लगभग ₹15,392 प्रति क्विंटल (100 किलो) था। कुछ मंडियों में यह दर ₹18,330 तक पहुंच गई थी। यह दर पिछले कुछ महीनों की तुलना में काफी अधिक है। राज्यों के अनुसार भाव में अंतर है। उत्तर प्रदेश में यह ₹146 प्रति किलो था, जबकि गुजरात में ₹63.1 प्रति किलो था। यह अंतर आवक, मांग और स्थानीय कारकों पर निर्भर करता है।
सरसों तेल कीमतों पर नियंत्रण के लिए सरकारी नीतियां
सरकों तेल कीमतों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने कई नीतिगत कदम उठाए हैं। इनमें आयात शुल्क में कटौती, जीएसटी दर में कमी और नए विनियमन आदेश शामिल हैं। ये कदम लंबे समय में बाजार को स्थिर करने के लिए हैं।
विवरण | जानकारी |
वर्तमान जीएसटी दर | 5% |
आयात शुल्क (कच्चा तेल) | 10% (पहले 20%) |
राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन | 2024-25 से 2030-31 तक |
उत्पादन लक्ष्य (2030-31) | 25.45 मिलियन टन |
वीओपीपीए आदेश 2025 | लागू (1 अगस्त से) |
मूल उद्देश्य | आत्मनिर्भरता, कीमत स्थिरता |
महत्वपूर्ण फसलें | सरसों, मूंगफली, सोयाबीन |
वित्तीय परिव्यय | 10,103 करोड़ रुपये |
सरसों तेल भाव पर प्रभाव डालने वाले कारक
सरसों तेल के भाव पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है। इनमें घरेलू उत्पादन, आयात, आपूर्ति-मांग संतुलन और सरकारी नीतियां शामिल हैं। इन सभी कारकों को समझना भाव की दिशा जानने के लिए जरूरी है।
- उत्पादन में कमी: खराब मौसम या फसल बीमारी के कारण उत्पादन कम होने से आपूर्ति घटती है। इससे भाव बढ़ते हैं।
- त्योहारी मांग: दिवाली, शादियों और सर्दियों के मौसम में सरसों तेल की मांग बढ़ जाती है। यह मांग भाव को ऊपर धकेलती है।
- आयात नीति: कच्चे तेल पर आयात शुल्क घटाने से घरेलू रिफाइनर्स को फायदा मिलता है। लंबे समय में यह भाव स्थिर कर सकता है।
- जीएसटी में कमी: सरसों तेल पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है। यह उपभोक्ताओं के लिए राहत है।
- स्टॉकिंग और जमाखोरी: बड़े व्यापारी भाव बढ़ाने के लिए स्टॉक बना सकते हैं। नया वीओपीपीए आदेश इसे रोकने में मदद करेगा।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार: वैश्विक वनस्पति तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारतीय बाजार पर प्रभाव पड़ता है।
- राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन: यह मिशन घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर फोकस करता है। लंबे समय में यह आयात पर निर्भरता कम करेगा।
- डिजिटल निगरानी: वीओपीपीए आदेश के तहत तेल कंपनियों को मासिक रिपोर्टिंग करनी होगी। यह पारदर्शिता बढ़ाएगा।
उपभोक्ता और किसान के लिए सुझाव
सरसों तेल के भाव में उतार-चढ़ाव का असर उपभोक्ता और किसान दोनों पर पड़ता है। दोनों को बाजार की जानकारी रखनी चाहिए ताकि वे फायदेमंद फैसले ले सकें।
उपभोक्ताओं को बड़े पैमाने पर खरीदारी से बचना चाहिए। छोटे पैकेट खरीदना बेहतर है। जीएसटी कम होने के बावजूद भाव ऊंचे हैं। अलग-अलग दुकानों के भाव तुलना करना चाहिए। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी भाव चेक करें। बजट बनाकर खरीदारी करें।
किसानों को भाव की निगरानी लगातार रखनी चाहिए। आगरा, मेरठ जैसी मंडियों में भाव अधिक है। अपने नजदीकी मंडी का भाव जानें। अच्छे भाव पर बेचने का फैसला लें। सरकारी मिशन के तहत उच्च उपज वाले बीज लें। यह भविष्य में फायदेमंद होगा।
भाव का भविष्यानुमान
विशेषज्ञों के अनुसार, अक्टूबर से दिसंबर 2025 तक सरसों तेल के भाव में और तेजी आ सकती है। त्योहारों के सीजन में मांग बढ़ने की उम्मीद है। आवक सीमित रहने की संभावना है। इससे भाव ₹16,000 प्रति क्विंटल तक पहुंच सकते हैं। लेकिन सरकारी हस्तक्षेप और आयात बढ़ने से भाव बहुत अधिक नहीं बढ़ेंगे। लंबे समय में, राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत उत्पादन बढ़ने से भाव स्थिर होंगे।